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हैहयवंश का उदय “हैहय-कथा” का दूसरा भाग

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हैहयवंश का उदय

सुनें हैहयवंश उदय: हैहय कथा भाग दूसरा

पहले भाग मे हमने देखा किस तरह चंद्रवंश का उद्भव हुआ, अब हम यह जानेंगे की चंद्रवंश से हैहयवंश का उदय किस प्रकार हुआ | हैहय से ‘क्षत्रिय – वंश’ इस प्रकार चला, हैहय का पुत्र ‘धर्म’, धर्म का पुत्र’ धर्मनेत्र’, धर्मनेत्र का ‘कुंति’, कुंति का ‘सहजित’, सहजित का ‘महिष्मान’, महिष्मान का ‘भद्रश्रेण्य’, भद्रश्रेण्य का ‘दुर्दम’ और दुर्दम का ‘धनक’ हुआ। धनक के चार पुत्र हुए- ‘कृतवीर्य’, ‘कृताग्नि’, ‘कृतधर्म’ और ‘कृतौजा’। राजा कृतवीर्य के यहाँ महाप्रतापी कातृवीर्य ‘सहस्रार्जुनने जन्म लिया।

राजा कार्तवीर्य सहस्रार्जुन के सौ पुत्र हुए, उनमें पाँच पुत्र अत्यन्त महाबली, पराक्रमी और धर्मवीर थे। उनके नाम ‘शूरसेन’, ‘शूर’, ‘वृष सेन’, ‘मधुध्वज’ और ‘जयध्वज’ प्रमुख थे। जयध्वज अवन्ति देश (उज्जैन) के राजा हुए। जयध्वज के राजा तालजंघ हुए। इनके पुत्रों के नाम से वीतहव्य, शर्यात, तुण्डिकेर, भोज और अवन्ति नामक पाँच वंश विख्यात हुए। महाराज कार्तृवीर्य के शेष चार पुत्रों से चार प्रमुख राजवंश हुए। शूर और शूरसेन से ‘शूरवंश’ (शौरि ), मधुध्वज से ‘माधववंश’, वृषसेन से ‘वृष्णिवंश’ (वार्ष्णेय), जिसमें ‘श्रीकृष्ण’ और ‘बलराम’ हुए।

सहस्रार्जुन के इन सौ पुत्रों में पाँच पुत्र – ‘शूरसेन’, ‘शूर’, ‘वृषसेन’, ‘मधु’ और ‘जयध्वज’ ही परशुराम के साथ युद्ध करते हुए जीवित बचे थे, शेष मारे गए थे।

माहिस्मती नगरी ‘त्रेतायुग’ में अत्यन्त प्रसिद्ध नगरी थी। उस काल में कृतवीर्य की लोकप्रियता और धर्मनिष्ठा के कारण ही यह युग, ‘कृतयुग’ के नाम से जाना जाता था। महाराज कृतवीर्य की अनेक रानियाँ थीं। सूर्यवंशी सत्यवादी महाराज हरिश्चन्द्र की पुत्री पद्मिनी देवी राजमहिषी के पद पर विराजमान थीं। वह अत्यन्त विदुषी, बुद्धिमान और पतिव्रता स्त्री थीं, इन्हीं के गर्भ से ‘कार्तृवीर्य अर्जुन’ का जन्म हुआ था, जो अपनी यशकीर्ति के कारण इतिहास में ‘भगवान सहस्रार्जुन’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

हैहयवंश का ऐतिहासिक संदर्भ 

‘हैहय’ शब्द ‘अहि + हय’ के योग से बना है। हैहयों ने अपने प्राचीन काल में ‘यथा नाम तथा गुण’ के सिद्धान्त को धारण किया था। ये लोग ‘नाहुष’ थे, ये नाहुष ही आगे चलकर ‘नाग’ हो गए थे। चिन्तामणि ‘हटेला ‘ ने अपनी पुस्तक ‘हैहय क्षत्रिय वंश इतिहास’ में ऐसा ही मत प्रतिपादित किया है। उनका कहना है कि इन नाहुषों के पास ‘हय-शक्ति’ अर्थात् ‘अश्व-शक्ति’ बहुत बढ़ी चढ़ी थी। इस हय-शक्ति के कारण ही ये अहि नाग (नाहुष) ‘हैहय’ कहे जाते थे ।

मिश्र बन्धुओं ने अपनी पुस्तक ‘भारतवर्ष का इतिहास’ के पृ. 203-4 पर कहा है कि सूर्यवंशी ‘अश्व’ उपाधिधारी राजाओं ने ‘हयदल’ की प्रबलता पर बहुत ध्यान दिया था इसलिए उनमें विश्वगाश्व, कुबलयाश्व’, युवगाश्व’, ‘कृशाश्व’ आदि राजाओं की श्रृंखला का उल्लेख मिलता है।

इसी प्रकार ऐल यादवों की एक शाखा ने सूर्यवंशी राजाओं के अनुकरण पर ही ‘अश्व’ सूचक ‘टोटेम’ नाम धारण किए थे। अन्तर केवल इतना था कि इन यदुवंशी शासकों ने ‘अश्व’ का पर्यायवाची शब्द ‘हय’ को चुना था और उसके साथ ‘अहि’ शब्द जोड़कर ‘हैहय’ नाम धारण किया था। पुराणों में ‘हैहयानाम् महात्मनाम्’ कहकर हैहयों को वीर, धर्मात्मा और दानी कहा गया है। — (हैहय क्षत्रिय वंश इतिहास – चिन्तामणि हटेला पृ. 59 )

महाकवि केशव ने ‘रामचंद्रिका’ में रावण-अंगद प्रसंग में अंगद के मुख से रावण को चेतावनी देते हुए कहलाया था कि, हैहयराज कार्तृवीर्य ने जो दशा तुम्हारी की थी, उसे सम्भवतः तुम भूले नहीं होगे। राम से विरोध का परिणाम उससे भी बुरा होगा। तब रावण ने अगद से पूछा “कौन हैहय?”। 

अंगद ने कहा- ‘जिन खेलत ही तुम्हें बाँध लिया । ” इसी हैहय वंश परम्परा में ‘धर्मनेत्र’, ‘कुन्तिराज’, ‘साहंजय’ (संजय) और ‘महिस्मान हुए साहंजय ने ‘साहंजनी’ और महिस्मान ने ‘माहिस्मती’ (वर्तमान महेश्वर – जिला इंदौर) बसायी, जो नर्मदा के तट पर स्थित है ।

माहिष्मती प्राचीन भारत की एक नगरी थी जिसका उल्लेख महाभारत तथा दीर्घनिकाय सहित अनेक ग्रन्थों में हुआ है। अवन्ति महाजनपद के दक्षिणी भाग में यह सबसे महत्वपूर्ण नगरी थी। बाद में यह अनूप महाजनपद की राजधानी भी रही। 

भारतीय प्राचीन साहित्य में माहिष्मती नगर के बारे में कई सन्दर्भ दिये गये हैं, लेकिन इसकी सही स्थिति पर मतैक्य नहीं है। एक मान्यता यह है कि माहिष्मती वर्तमान समय के मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर स्थित माहेश्वर नगर और उसके आस पास के क्षेत्र तक फैली थी, कहा जाता है कि यह नगरी १४ योजन की थी, और पांडवकालीन शिव मंदिर वाला गाँव चोली (तहसील महेश्वर, जिला खरगोन, मध्यप्रदेश) तक फैली हुई थी। माहेश्वर के समीप ही नर्मदा नदी के तट पर स्थित, नगर मंडलेश्वर में, माहिष्मती नामक नगर की स्थापना नर्मदा नदी के किनारे हैहय वंश के राजा ‘महिएतम’ ने की थी। 

कार्तवीर्य पूजन मंत्र 

ॐ कार्तवीर्याय विद्महे महा-वीर्याय धीमहि तन्नोऽ चक्रअर्जुनः प्रचोदयात्:।।

कार्त्तवीर्य अर्जुन जन्म  

कार्त्तवीर्य अर्जुन के जन्म के विषय मे स्मृति-पुराण, वायु-पुराण, पद्म-पुराण, विष्णु-पुराण, अग्नि-पुराण, हरिवंश-पुराण, मत्स्य-पुराण, श्रीकूर्म-पुराण, ब्रह्म-पुराण, नारद-पुराण, महाभारत, इत्यादि पुराणों मे स्पष्ट वर्णन मिलता है |

कार्त्तवीर्य अर्जुन (सहस्रबाहु), हैहय वंश का प्रतापी राजा हुआ करता था, नारद पुराण के अनुसार, सहस्र भुजा वाले सहस्रबाहु अर्जुन, सहस्र ब्लेड वाले सुदर्शन चक्र के अवतार थे। भागवत पुराण में कहा गया है कि  “पृथ्वी के अन्य शासक बलिदान, उदार दान, तपस्या, योगिक शक्तियों, विद्वानों के प्रदर्शन के मामले में कार्तवीर्य अर्जुन की बराबरी तक नहीं पहुंच सकते| शाक्त्यवेश अवतार, परशुराम के साथ प्रतियोगिता में विष्णु की शक्ति का सामना करने के लिए उनका जन्म पृथ्वी पर हुआ था। 

पुराणों के अनुसार वो भगवान विष्णु के मानस प्रपुत्र तथा भगवान सुदर्शन का स्वयंअवतार है। उन्होंने सात महाद्वीपों (कुछ ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मांड) पर विजय प्राप्त की और अपनी राजधानी माहिष्मती से 85 हजार वर्षों तक शासन किया। उनके अधिकृत आर्यव्रत के 21 क्षत्रिय राजा थे। वायु और अन्य पुराण से उन्हे भगवान की उपाधि प्राप्त है और धन और खोए कीर्ति के देवता का मान भी। उन्हें महान राजा कृतवीर्य का पुत्र बताया गया है।

स्मृति-पुराण के 15 वे अध्याय के श्लोक 3 मे कहा गया है कि कार्तिक मास सप्तमी के दिन रविवार को श्रावण नक्षत्र के शुभ मुहर्त मे प्रातःकाल मे हैहयवंशी शिरोमणि कृतवीर्य महाराज की धर्मपरायण पत्नी पद्मिनी के गर्भ से हुआ था, वे अत्री गौत्र मे उत्पन्न हुए थे |

इनके पिता महाराज कृतवीर्य और माता महारानी पद्मिनी थीं  इनकी माता इक्ष्वकुवंशी राजा हरिशचन्द्र की पुत्री थीं | इनका विवाह इक्ष्वाकु राजकुमारी मनोरम से हुआ था | कार्तवीर्य अर्जुन का मूल नाम अर्जुन था, कार्तवीर्य इन्हें राजा कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण कहा गया। 

इनके अन्य नामों में, सहस्रबाहु अर्जुन, सहस्रबाहु कार्तवीर्य या सहस्रार्जुन इन्हें हज़ार हाथों के वरदान के कारण; हैहय वंशाधिपति, हैहय वंश में श्रेष्ठ राजा होने के कारण; माहिष्मति नरेश, माहिष्मति नगरी के राजा; सप्त द्वीपेश्वर, सातों महाद्वीपों के राजा होने के कारण; दशग्रीव जयी, रावण को हराने के कारण और राजराजेश्वर, राजाओं के राजा होने के कारण कहा गया। अर्जुन के पास एक हजार अक्षौहिणी सेनाएं थी यह भी एक कारण है कि उनका नाम सहस्रबाहु था अर्थात् जिसके पास सहस्त्रबाहु अर्थात सहस्त्र सेनाएं हों।

उन्हें एक हजार हाथ वाले और देवता दत्तात्रेय के एक महान भक्त के रूप में वर्णित किया गया है, महाभारत वन पर्व में, अकृतवन की कहानी के अनुसार, अर्जुन ने दत्तात्रेय को प्रसन्न किया और कई वरदान प्राप्त किए |  उन्होंने एक नागा प्रमुख, कर्कोटक नागा से, माहिष्मती शहर पर विजय प्राप्त की, और इसे अपनी गढ़-राजधानी बनाया (जो कर्कोटा ने कृतवीर्य से जीता)। 

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